पुलवामा हमले पर आग उगलती हुई कविता
सबकी आंखों में आंसू के सागर भरे हुए तो थे।
हिम्मत और होंसला था वे फिर भी मरे हुए तो थे।।
देश हमारा पूरा ही गमगीन दिखाई देता था।
मुझको तो केदारनाथ का सीन दिखाई देता था।
वो घर जिसमे बेटे के आने पर उत्सव होता था।
जंग जीतने जैसा ही कोई विजयोत्सव होता था।
इकलौता लावारिस होकर भी सब बन्धन तोड़ गया।
बूढे माँ बापू को घर मे देश के खातिर छोड़ गया।
लेकिन ये क्या खबर सुनी सुनते ही आंखे भर आयी।
तभी तिरंगे में लिपटी वो एक भुजा ही घर आयी।
जहाँ हुई नापाक ये हरक़त धरती भी रोई होगी।
एक भुजा की लाश देखकर अर्थी भी रोई होगी
ऐसे कितनी ही माँ ओ ने अपने बेटे खोये है।
लेकिन हम तो फिर भी कुम्भकरण निद्रा में सोये है।
कैंडल मार्च निकाले हमने मोन रखा दो मिनटों का।
चौराहे पर फोटो टांगी भाषण दो दो घंटो का।
वाट्सअप ओर फेसबुक पर गाली गाली कर डाली।
और बदले में हमने अपनी डीपी काली कर डाली।
सोशल मीडिया पर कितने ही भाईबंद मिल जाएंगे।
उल्टी सीधी राय बताते रायचंद मिल जाएंगे।
ऐसे कितने ही है जीन ने पाक साफ कर डाला है।
परमाणु हथियार चलाकर उसे हाफ कर डाला है।
ऐसा डोंगी राष्ट्रप्रेम बेपर्दा तब हो जाता है।
जब ट्रेनों में वर्दी वाला नीचे ही सो जाता है।
हमको अपने स्वाभिमान के स्वर बुलंद करने होंगे।
हत्यारे देशो से अब व्यापार बन्द करने होंगे।
सैतालिस से अब तक जितने घाव दिए सब भर जाए।
इजराइल ओर लंका जैसे ही हम भी कुछ कर जाए।
जो राहो में शूल बने वो पत्थर हटवा सकते हो।
तुम चाहो तो धारा तीन सौ सत्तर हटवा सकते हो।
जो दीवार बाटती घर को उसे हटा दो मोदी जी।
आतंकों के पनाहगार को धूल चटा दो मोदी जी।
जो नक्शे में हमे दिखाया वो किस्सा हो जाने दो।
Pok को फिर से भारत का हिस्सा हो जाने दो।।
हिम्मत और होंसला था वे फिर भी मरे हुए तो थे।।
देश हमारा पूरा ही गमगीन दिखाई देता था।
मुझको तो केदारनाथ का सीन दिखाई देता था।
वो घर जिसमे बेटे के आने पर उत्सव होता था।
जंग जीतने जैसा ही कोई विजयोत्सव होता था।
इकलौता लावारिस होकर भी सब बन्धन तोड़ गया।
बूढे माँ बापू को घर मे देश के खातिर छोड़ गया।
लेकिन ये क्या खबर सुनी सुनते ही आंखे भर आयी।
तभी तिरंगे में लिपटी वो एक भुजा ही घर आयी।
जहाँ हुई नापाक ये हरक़त धरती भी रोई होगी।
एक भुजा की लाश देखकर अर्थी भी रोई होगी
ऐसे कितनी ही माँ ओ ने अपने बेटे खोये है।
लेकिन हम तो फिर भी कुम्भकरण निद्रा में सोये है।
कैंडल मार्च निकाले हमने मोन रखा दो मिनटों का।
चौराहे पर फोटो टांगी भाषण दो दो घंटो का।
वाट्सअप ओर फेसबुक पर गाली गाली कर डाली।
और बदले में हमने अपनी डीपी काली कर डाली।
सोशल मीडिया पर कितने ही भाईबंद मिल जाएंगे।
उल्टी सीधी राय बताते रायचंद मिल जाएंगे।
ऐसे कितने ही है जीन ने पाक साफ कर डाला है।
परमाणु हथियार चलाकर उसे हाफ कर डाला है।
ऐसा डोंगी राष्ट्रप्रेम बेपर्दा तब हो जाता है।
जब ट्रेनों में वर्दी वाला नीचे ही सो जाता है।
हमको अपने स्वाभिमान के स्वर बुलंद करने होंगे।
हत्यारे देशो से अब व्यापार बन्द करने होंगे।
सैतालिस से अब तक जितने घाव दिए सब भर जाए।
इजराइल ओर लंका जैसे ही हम भी कुछ कर जाए।
जो राहो में शूल बने वो पत्थर हटवा सकते हो।
तुम चाहो तो धारा तीन सौ सत्तर हटवा सकते हो।
जो दीवार बाटती घर को उसे हटा दो मोदी जी।
आतंकों के पनाहगार को धूल चटा दो मोदी जी।
जो नक्शे में हमे दिखाया वो किस्सा हो जाने दो।
Pok को फिर से भारत का हिस्सा हो जाने दो।।
कवि पीरूलाल कुम्भकार