पुलवामा हमलें पर अब तक की सबसे अच्छी कविता
दिल को दहला देने वाला ऐसा कांड हुआ है ये।
जैसे जलिया वाला फिर से हत्या कांड हुआ है ये।
लाशो का अंबार लगा है काश्मीर की वादी में।
खूनी ख़ंजर घोप दिए है मनसूबे जेहादी ने।
कितनी बहनो की राखी व मांगो के सिंदूर गये।
कितनी माताओ के बेटे अब उनसे ही दूर गए।
कितनी औलादों के सर पे बाप का साया नही रहा।
ओर कितने ही होंगे जिनके घर का जाया नही रहा।
अब तो कोई झटका दे दो उन जहरीले नागों को।
श्वेत धरा में देते है अंजाम जो खूनी फागों को।
आतंकी आकाओ को भी अपना जोश दिखा डालो।
भारत मे अब भी जिंदा है वल्लभ,बोस दिखा डालो।
इंदिरा जैसी लक्ष्मी बाई के तेवर अपनाओ तुम।
मंगल पांडे भगत सिंह की भाषा बोल दिखाओ तुम।
हमने पहले हनुमान बनकर लंका को दहन किया।
लेकिन फिर भी घाटी में अत्याचारो को सहन किया।
अब घाटी को अगर सुरक्षित रख पाना मजबूरी है।
तो दाड़ी वाले रावण का मरना बहुत जरूरी है।
जो जिहाद के खतिर मानवता का लहू बहाते है।
ओर पूरी दुनिया को अपनी उंगली पर नचवाते है।
जैश मोहम्मद लश्कर आई एस हमले भी कर देते है।
ओर इतनी औकात के फिर जिम्मेदारी भी लेते है।
उनको फिर से छप्पन इंची सीना दिखलाना होगा।
उनकी भाषा मे मरना ओर जीना सिखलाना होगा।
रोज रोज विधवा विलाप के अब आंसू थम जाने दो।
सेना को कुछ दिन के खातिर महाकाल बन जाने दो।
जंग लगे हथियारों को भी आज काम आ जाने दो।
नयन तीसरा खोलो दुश्मन पर तांडव छा जाने दो।
जो नक्शे में हमे दिखाया वो किस्सा हो जाने दो।
फिर से pok को भारत का हिस्सा हो जाने दो।
जैसे जलिया वाला फिर से हत्या कांड हुआ है ये।
लाशो का अंबार लगा है काश्मीर की वादी में।
खूनी ख़ंजर घोप दिए है मनसूबे जेहादी ने।
कितनी बहनो की राखी व मांगो के सिंदूर गये।
कितनी माताओ के बेटे अब उनसे ही दूर गए।
कितनी औलादों के सर पे बाप का साया नही रहा।
ओर कितने ही होंगे जिनके घर का जाया नही रहा।
अब तो कोई झटका दे दो उन जहरीले नागों को।
श्वेत धरा में देते है अंजाम जो खूनी फागों को।
आतंकी आकाओ को भी अपना जोश दिखा डालो।
भारत मे अब भी जिंदा है वल्लभ,बोस दिखा डालो।
इंदिरा जैसी लक्ष्मी बाई के तेवर अपनाओ तुम।
मंगल पांडे भगत सिंह की भाषा बोल दिखाओ तुम।
हमने पहले हनुमान बनकर लंका को दहन किया।
लेकिन फिर भी घाटी में अत्याचारो को सहन किया।
अब घाटी को अगर सुरक्षित रख पाना मजबूरी है।
तो दाड़ी वाले रावण का मरना बहुत जरूरी है।
जो जिहाद के खतिर मानवता का लहू बहाते है।
ओर पूरी दुनिया को अपनी उंगली पर नचवाते है।
जैश मोहम्मद लश्कर आई एस हमले भी कर देते है।
ओर इतनी औकात के फिर जिम्मेदारी भी लेते है।
उनको फिर से छप्पन इंची सीना दिखलाना होगा।
उनकी भाषा मे मरना ओर जीना सिखलाना होगा।
रोज रोज विधवा विलाप के अब आंसू थम जाने दो।
सेना को कुछ दिन के खातिर महाकाल बन जाने दो।
जंग लगे हथियारों को भी आज काम आ जाने दो।
नयन तीसरा खोलो दुश्मन पर तांडव छा जाने दो।
जो नक्शे में हमे दिखाया वो किस्सा हो जाने दो।
फिर से pok को भारत का हिस्सा हो जाने दो।
कवि पीरूलाल कुम्भकार