लो मधुमास आ गया किसानों की फसलें घर आई है।
दाम मिलें मेहनत के चेहरे पर खुशियां भर आईं है।
धरती माँ भी सजी सँवरती नई दुल्हन सी लगती है।
उष्णकाल में भी देखो जैसे सावन सी लगती है।
चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा है बहुत खास।
जीव चराचर को तो छोड़ो प्रकृति में भी है उल्लास।
धरती माँ भी होते इस परिवर्तन को महसुस करे।
देश धर्म संस्कृति बचाने को हम भी अब कूच करें।
पश्च्यात सभ्यता के पीछे हम धर्म हमारा खो बैठे।
जिसके कारण थे विश्वगुरु,उससे विहीन हम हो बैठे।
अगर करे हम फिर प्रयास तो दुनियां में छा सकते है।
अपना धर्म बचाये हम तो दुनिया को भा सकते है।
पहल आज से करनी होगी कल पर छोड़ नही सकते।
पार्थ बढेंगे धर्म विजय को रथ अब मोड़ नही सकते।
सृष्टि का निर्माण हुआ उस दिन को हर्ष मनाते है।
आओ हम सब मिलकर के हिन्दू नववर्ष मनाते है।
दाम मिलें मेहनत के चेहरे पर खुशियां भर आईं है।
धरती माँ भी सजी सँवरती नई दुल्हन सी लगती है।
उष्णकाल में भी देखो जैसे सावन सी लगती है।
चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा है बहुत खास।
जीव चराचर को तो छोड़ो प्रकृति में भी है उल्लास।
धरती माँ भी होते इस परिवर्तन को महसुस करे।
देश धर्म संस्कृति बचाने को हम भी अब कूच करें।
पश्च्यात सभ्यता के पीछे हम धर्म हमारा खो बैठे।
जिसके कारण थे विश्वगुरु,उससे विहीन हम हो बैठे।
अगर करे हम फिर प्रयास तो दुनियां में छा सकते है।
अपना धर्म बचाये हम तो दुनिया को भा सकते है।
पहल आज से करनी होगी कल पर छोड़ नही सकते।
पार्थ बढेंगे धर्म विजय को रथ अब मोड़ नही सकते।
सृष्टि का निर्माण हुआ उस दिन को हर्ष मनाते है।
आओ हम सब मिलकर के हिन्दू नववर्ष मनाते है।