सूरत अग्निकांड,एक मार्मिक कविता
सूरत की वो बदसूरत तस्वीरे सब ने देखी है।
बेबस लाचारों की चीखे पीरे सब ने देखी है।
बेबस लाचारों की चीखे पीरे सब ने देखी है।
उन बेटो ने कैसे कैसे ख़्वाब सजाये भी होंगे।
और वहां वे सपना पूरा करने आये भी होंगे।
घर से हंसते गाते आये बोले जल्दी आएंगे।।
लेकिन पता किसी को ना था लौट नही घर पाएंगे।
लेकिन पता किसी को ना था लौट नही घर पाएंगे।
कोई झुलस गया था पूरा,कोई कूद गया नीचे।
और तमाशा देख रहे थे लोग वहां आंखे मीचे।
कोई बच के निकला गर तो कूद गया उस बिल्डिंग से।
लेकिन जनता बचा ना पाई उनको अपनी फिल्डिंग से।
धुंआ धुँआ आकाश हुआ मातम के बादल छाए है।
अब भी पूरे भारत मे वो गम के बादल छाए है।
कभी आग से कभी बाढ़ सेेे कभी रोड़ दुर्घटना सेे।
कितने घर के दीप बुझे ऐसी अनहोनी घटना से।
अग्निकांड से छाती दहली है उस माँ के आंचल की।
ये कैसी हालत है साहब के गुजराती मॉडल की।
जंहा ब्रिगेडों की सीढ़ी चौथे माले तक ना पहुँची।
उसी देश के पास है मूर्ति दुनिया मे सबसे ऊंची।
तुमने बुलट ट्रेन मंगवाई भारत के उत्थान में।
लेकिन बुनियादी तकनीके लाओ हिन्दुस्तान में।
अदालतों में छोड़ा जाता उनको झूठ गवाही से।
रोज रोज़ मरता है भारत जिनकी लापरवाही से।
नमन करे हम लाज बचाने वाले राष्ट्र हितेषी को।
लेकिन केवल फांसी हो लापरवाही के दोषी को।
पीरूलाल कुम्भकार