अलीगढ़ रेप कांड
जुलाई 13, 2019
जिसने भी अन्जाम दिया हो,लेकिन कृत्य घिनोना है।
जिसकी उम्र खिलौने वाली,वो खुद बनी खिलौना है।
बेरहमी वाली भी सारी हदें पार कर दी उसने।
कुछ लालच खातिर मानवता शर्मसार कर दी उसने।
खिलने से पहले ही फिर मासूम कली को नोंच लिया।
और किसी ने नही बाग माली ने ख़ंजर घोंप दिया।
नन्ही सी मासूम जान से केसे हवस मिटाई है।
चीख दर्द सुनकर भी उसको तनिक दया न आई है।
जिसकी किलकारी से आँगन हरा भरा सा लगता है।
लेकिन अब तो हर बेटी का बाप डरा सा लगता है।
कंहा गए वे जिनको डर लगता था हिन्दुस्तान में?
कहाँ गए जिनको खतरा लगता था संविधान में?
पुरस्कार लौटाने वाली गैंग नही दिखती है अब।
"ट्विंकल हम शर्मिंदा"वाली टैग नही दिखती है अब।
हिन्दू मुस्लिम भाईचारा भी खतरे में नही दिखा।
नही किसी ने इस घटना पर लम्बा चोड़ा लेख लिखा।
सोशल मीडिया पर भी अब कुछ और दिखाई देता है।
निंदा निंदा ओ विलाप का शोर दिखाई देता है।
ऐसे करते करते हमने केसी केसी सह ली है।
अरे बताओ तुम ही यारो,क्या ये घटना पहली है?
इससे पहले कही निर्भया कंही आसिफा चीखी थी।
ये भारत के इतिहास पर चोट बहुत ही तीखी थी।
क्यो ऐसी घटना को हम निंदा से टाल दिया करते?
और हत्यारो को केवल जेलों में डाल दिया करते?
बस ये ही तो करते आये है हम सत्तर सालो से।
भरे पड़े है जेल हमारे,ऐसी घटना वालो से।
अब तो सबक सिखा दो इन कलयुग के महिषासुरो को।
चौराहे पर गोली मारो लाश खिलाओ कुत्तो को।
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