गांधी जयंती पर कविता
लेकिन आजादी के रण में पूरा हिन्दुस्तान थे।
यू तो गांधी अफ्रीका में करने गए वकालत थे।
और वँहा था रंगभेद उस कारण बुरे हालत थे।
इसीलिए फिर गांधी जी ने गोरों को ललकार दिया।
अत्याचार नही सहना है खुलकर वहां प्रचार किया।
हिन्दुस्थानी मजदूरों ने भी गांधी का साथ दिया।
खुद जा जाकर जेलें भरने का सबने ही काम किया।
आखिर घुटने टेक दिए थे फिर गोरी सरकारों ने।
सत्य अंहिंसा की ताकत पहचानी थी दरबारों ने।
लेकिन लन्दन में बैठे गोरे तब ज्यादा घबराए।
आजादी का शंखनाद करने जब वे भारत आये।
गोरो के अत्याचारों से देश बहुत आतंकित था।
औ सदियों से दाग गुलामी का भी हम पर अंकित था।
यू तो देश हमारा सदियों से त्यागी, बलिदानी था।
केवल हम ही थे ज्ञानी और सारा जग अज्ञानी था।
जब तक एक रहे हम तब तक विश्वगुरु रह पाए थे।
खण्ड खण्ड जब हुए हमारे तब से दुर्दिन आये थे।
इसीलिए गांधी ने पहले देश जोड़ना शुरू किया।
छुआछूत और जातिवाद का बंध तोड़ना शुरू किया।
गांधी जी के भाषण सुनने पूरा देश उमड़ता था।
पूरा भारत एक साथ आजादी लेने बढ़ता था।
जलियांवाला बाग़ बड़ी ही दर्दनाक सी घटना थी।
तब से हर भारतवासी को आज़ादी रट रटना थी।
जब असहयोग चला आंदोलन रोष जताने लगे सभी।
दावानल की तरह विदेशी वस्त्र जलाने लगे सभी।
निर्दोषों को दोषी बतलाकर के वार किया था जी।
मनमानी को ना माना तो नरसंहार किया था जी।
लेकिन गांधी अपने आदर्शों पर चलने वाले थे।
केवल सत्य अंहिंसा की राहो पर चलने वाले थे।
कहते थे कि लूट, मार, हिंसा से क्या मिल पाता है।
आखिर विश्वविजेता भी दुनिया से खाली जाता है।
कभी कँही भी गांधी जी ने खुद से धोखा नही किया।
जान गंवा दी पर आदर्शो से समझौता नही किया।
बापू ने गोरी सरकारों को भी हरदम झुका दिया।
पूरा जीवन अपने आदर्शो पर चलके दिखा दिया।
फिर आजादी मिली मगर बापू का सपना टूट गया।
एक बार फिर दो भागों में भारत अपना टूट गया।
आग लगाई थी भारत में भारत के गद्दारों ने।
टुकड़े टुकड़े करा दिए मजहब के ठेकेदारों ने।
जिनको अब भी गांधी जी का चित्र घिनौना लगता है!
गांधी जैसे महापुरुष का कद भी बौना लगता है।
उनसे केवल इतना कह दो ये अपनी औकात नही।
गांधी जी को समझ सके ये सब के बस की बात नही।
पीरूलाल कुम्भकार