नफरत की दीवारे फिर से ,सजने को है भारत में।
लगता है खतरे की घण्टी ,बजने को है भारत में।
धर्म बड़ा ही मान लिया जब, हिन्दुस्तानी माटी से।
तो देश नही चल सकता है,संवैधानिक परिपाटी से।
शायद गांधी फिर से जन्मे, ऐसा भी हो सकता है ।
या फिर गांधी जी से 'खाली', पैसा भी हो सकता है।
बंटवारे हमने झेले तो क्या हम इसके आदी है?
हम गांधी के बन्दर है लेकिन वे तो जेहादी है।
जो पहले खुद को गांधी का, भक्त बताया करते थे।
संविधान के अनुयायी है, सख़्त, बताया करते थे।
अब वे ही सड़को पर नँगा, नाच दिखाते फिरते है।
गली गली औ बस्ती बस्ती, आग लगाते फिरते है।
शायद इन लोगो ने गांधी ,जी से कुछ सीखा होता।
तो विरोध करने का इनके, शांतिपूर्ण तरीका होता।
हमने वसुदेव कुटुम्बकम के, सूत्र दिए थे दुनिया को।
भारत ने ही राम कृष्ण से, पुत्र दिए थे दुनिया को।
हमने अपने शान्तिदूत का दामन मैला नही किया।
हमने किसी देश पर आगे बढ़कर हमला नही किया।
हमने अच्छा किया सभी का, कौन हमारे साथ हुआ।
हमने सबका किया भरोसा,उस पर ही आघात हुआ।
जिसने चाहा लूटा, मारा, हमकोे ऐसी भुजा मिली।
हमने सबको अपना समझा, इसकी हम को सजा मिली।
अरबी, गजनी, गोरी हमलावर थे और विदेशी थे।
ऐबक, खिलजी, तुगलक,लोधी ,सबके सभी मवेशी थे।
बाबर एक लुटेरा जिसको ,सबने मार भगाया था।
लेकिन शरण हमारी आया,हमने गले लगाया था।
इसके बाद हुआ है क्या ये ,जग सारा ही जान गया।
धीरे धीरे अपने हाथो ,से पूरा अफगान गया।
ये अखण्ड भारत था जिसको ,खण्ड खण्ड में बाँट दिया।
जिसकी छाँव तले बैठे थे, उसी पेड़ को काट दिया।
हम सदियो से घायल थे लेकिन हमलावर अभी हुए।
और हमारे सिंहों वाले ,भी ये तेवर अभी हुए।
जो भी शरण हमारी आते ,फिर ना वापस जाते है।
जिसको देखो वे ही भारत ,में आकर बस जाते है।
शायद इस भारत को भी ये, पहले वाला समझ रहे।
बैठे तो ऐसे कि जैसे धरम की शाला समझ रहे।
लेकिन हमने लिया सबक इतिहास नही दुहराएँगे।
फिर से अरबी, गजनी, गोरी बाबर आ ना पाएंगे।
जितने भी है देशविरोधी, सबकी शामत आएगी।
आखिर बकरे की अम्मा अब, कब तक खैर मनाएगी।
नही दुबारा जाफर औ जयचंद सहेजे जाएंगे।
जो घुसपैठी बनकर आये वापस भेजे जाएंगे।